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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८३) ॥बीजो थोय जोमो॥ ॥ गिरनार विभूषण, निषण सुखकार ॥ श्री नेमि जिनेसर, अलवेसर आधार ॥ प्रभु वंछित पूरे, दुःख चूरे निरधार ॥ बहु भावे वंदा, राजिमती भरतार ॥ १ ॥ वैमानीक प्रभु दश, भुवनाधीश वरवीश ॥ ज्योतिषी पतिदोय, व्यंतर पति बत्रीश ॥ इय चउसठि इंद्रे, पूज्या जिन चावीश ॥ ते जिननी आणा, शिरवहुं हुं निशदीश ॥ २ ॥ त्रिभुवन जिनवंदन, आनंदन जिन वाणी॥ सिंहासन बेसी, उपदेशी हित आणी ॥ जेह मांहे बखाणी, जीवदया मुणो प्राणी ॥ ते वाणी आराधी, वरीये शिव पटराणी ॥३॥ संघ सानिध्य कारी; जय कारी वरदाई । शासन रखवाली, विधन हरे अंबाई ।। बावीशमा जिननी, सेवा करो चित्त लाई, बुध मीतिविजय कहे, मुख संपद में पाई ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री पार्श्वनाथजीनी थोय जोमो ॥ ॥ प्रणमुं नित्य पास चिंतामणि, सेाहे तस सप्त फणामणि ।। सस महिमा मही मांहेज घणी, मुमसन्न सदा मुझ जगत धणी॥१॥ बंदुं हुं अतीत अनागता, वीश विहरमान चारे शावता ॥ संपई मिनवर सवि वेदीयें, मनमोहन देखी आणंदीये ॥२॥ भरपरें गाजे मेहलो, सांभळतां अधिक स्नेहला ॥ एहवो आगम जिनवर भौखियो, सहु गणधर मलि परकाशियो ॥३॥ श्री पास परण For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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