SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ८४ ) सेवा सदा, जेही छहियें सुख संपदा || दया कुशल कहे सेा भग, संघ विघन हरे पमाव || ४ || इति ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ बीजो थोय जोमो ॥ || सुविधि सेवा || ए देशी. ॥ || पास जिणंदा वामा नंदा, जब गरमें फली || सुपना देखे अर्थ विशेषे, कहे मघवा मली || जिनवर जाया सुर हुलराया, हुआ रमणि प्रिये ॥ नेमी राजी चित्त विराजी, विलोकित व्रत लीये ॥ १ ॥ वीर एकाकी चार हजारे, दीक्षा धुर जिनपति ॥ पासने मल्लि त्रय 'शत साथै, बीजा सहस्त्रे व्रती ॥ षट शत साथै संयम धरता, वासुपूज्य जग धणी । अनुपम लीला ज्ञान रसीला, देजो मुझने घणी || २ || जिनमुख दीठी वाणी मीठी, सुरतरु बेडी ॥ द्वाख विहासे गई वनवासे, पीले रस सेडी || साकर सेती, तरणा लेती, मुखे पशु चावती || अमृत मीढुं स्वर्गे दीतुं, सुरवधू गावती ||३|| गजमुख दक्षा वामन यक्षौ, मस्तके फणावळी ॥ चार ते बांदी, कच्छप' वाही, काया जस शामली ॥ चकर प्रौढा नागारूढा, देवी पद्मावती ॥ सेावन कांति प्रभु गुण गाती, बीर घरे आवती ॥ ४ ॥ इति ॥ १ प्रणशे. २ काचबाना वाहन वाळा, For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy