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(१५४ ) रे; ते प्राणी जुज अवतारी, भाख्या० ॥६॥ ते दिवसे राखी समता, छोडो मोह माया ने ममता रे; समता रस दिलमां धारी, भाख्या०॥७॥ नव पूर्वतणो सार लावी, जेगे कल्पसूत्र बनावी रे; भद्रबाहु वीर अनुसारी, भाख्या० ॥ ८ ॥सोना रुपानां फुलडां भरीए, ए कल्पनी पूजा करीए रे, ए शास्त्र अनोपम भारी,भाख्या०॥ ॥ ९॥ गीत गान वाजिंत्र वजावे, प्रभुजीनी आंगी रचावे रे कर भक्ति वार हजारी, भाख्या० ॥ १० ॥ सुगुरु मुखथी ए सार, सुणे अखंड एकवीश वार रे; जुए एहिज भवे शिव प्यारी, भाख्या० ॥११॥ एम अनेक गुणना खाणी, ते पर्व पजुसण जाणी रे; सेवो दान दया मनोहारी, भाख्या० ॥ १२ ॥
॥ श्री गौतम स्वामीनुं स्तवन ॥
॥ कपूर होये अती उजलो रे-ए देशी ॥ पहेलो गणधर वीरनो रे, शासननो शणगार: गौतम गोत्र तणो धणी रे, गुण मणिरयण भंडार, जयंकर जीयो गौतम स्वाम, गुण मणि केरो धाम, ज० नवनिधि होय जस नाम, ज० पूरे वंछित काम, ज० जीयो० ॥१॥ ज्येष्ठा नक्षत्रे जनमीओरे, गोबर गाम मोझार, विश्वभूति पृथ्वीतणो रे, मानवी मोहनगार, ज० ॥२॥ वीर कने दीक्षा ग्रही रे, पांचसोनो परिवार, छह छह करी पारj रे, उग्र करे विहार, ज०॥३॥ अष्टापद लब्धे करी रे, वांद्या जिन
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