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(२६) पामी जे सिववास ॥ ४ ॥ एम चोवीस जिन समरतां ए, पाचे मननी आश ॥ अमीकुमर एणी परे भणे,ते पामे लील वीलास॥५॥ इति चैत्यवंदन ॥
॥ अथ श्री सिमंधरजिन चैत्यवंदन ॥
॥ वंदु जिनवर विहरमान, सिमंधर स्वामी ॥ केवल कमला कांत दांत ॥ करुणारस धामी ॥१॥ कंचनगिरि सम देह कांत, वृष लांछन पाय ॥ चोराशी लख पूर्व आय,सेवित सुर राय, ॥२॥ छठ भत्त संयम लीयोए, पुंडरिगिणि भाण ॥ प्रभु घो दरिसण सं. पदा, कारण परमकल्याण ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ बीजु ॥
॥ जंबुद्विप पूरव दोशे, पुष्कल वइ विजये ॥ नयरी पुंडर गिणी निरमली, धर्म सदा जिहां सजीए ॥१॥ श्रेयांस नरेसर नंद चंद, सत्यकी मात मल्हार ।। रुखमणी राणी बालहो, शिववधु उरहार ॥ २ ॥ धनुष पांचसे देहमान, कंचन वरणी काय ।। वृषभ लंछन रलियामणो, पूर्व चोराशी आय ॥ ३॥ शांति कुंथु अंतर जन्म, श्रीमंधर जिनराज ॥ वीस लाख पूर्व कुमर पद, वेशठ लाख पूर्वराज ॥ ४ ॥ श्री मुनीसुव्रत जब विचरता, तब प्रभु लीये दीक्षा ॥ कर्म खपावो केवल लही, दोये बह जन शिक्षा ॥ ५ ॥ उदय नाथने शासने, वरशे शिव पटराणी ।। सो कोड मुनीराजजी, दस
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