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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६) पामी जे सिववास ॥ ४ ॥ एम चोवीस जिन समरतां ए, पाचे मननी आश ॥ अमीकुमर एणी परे भणे,ते पामे लील वीलास॥५॥ इति चैत्यवंदन ॥ ॥ अथ श्री सिमंधरजिन चैत्यवंदन ॥ ॥ वंदु जिनवर विहरमान, सिमंधर स्वामी ॥ केवल कमला कांत दांत ॥ करुणारस धामी ॥१॥ कंचनगिरि सम देह कांत, वृष लांछन पाय ॥ चोराशी लख पूर्व आय,सेवित सुर राय, ॥२॥ छठ भत्त संयम लीयोए, पुंडरिगिणि भाण ॥ प्रभु घो दरिसण सं. पदा, कारण परमकल्याण ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ बीजु ॥ ॥ जंबुद्विप पूरव दोशे, पुष्कल वइ विजये ॥ नयरी पुंडर गिणी निरमली, धर्म सदा जिहां सजीए ॥१॥ श्रेयांस नरेसर नंद चंद, सत्यकी मात मल्हार ।। रुखमणी राणी बालहो, शिववधु उरहार ॥ २ ॥ धनुष पांचसे देहमान, कंचन वरणी काय ।। वृषभ लंछन रलियामणो, पूर्व चोराशी आय ॥ ३॥ शांति कुंथु अंतर जन्म, श्रीमंधर जिनराज ॥ वीस लाख पूर्व कुमर पद, वेशठ लाख पूर्वराज ॥ ४ ॥ श्री मुनीसुव्रत जब विचरता, तब प्रभु लीये दीक्षा ॥ कर्म खपावो केवल लही, दोये बह जन शिक्षा ॥ ५ ॥ उदय नाथने शासने, वरशे शिव पटराणी ।। सो कोड मुनीराजजी, दस For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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