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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७) लाख केवल नाणी ॥६॥ सकल गुणे करी शोभता ए, शिवरम : णी शिणगार ॥ श्रीरूपविजय कविरायनो, माणेक कहे मुझतार ॥७॥ इति ।। ॥त्रीजु ॥ ॥ श्री सीमंधर विचरता, सोहे विजय मोझार ॥ समवसरण देवे रत्यु, बेसे परखदा बार ॥ १॥ नव तस्व दीये देशना, सांभळे सुरनर कोड ॥ षट द्रव्यादिक वरणवे, ले समकित कर जोड ॥ २॥ इहां थकी जिन वेगळा, सहस तेत्रीश शत एक ॥ सत्तावन जोजन वलि, सचर कला विवेक ॥ ३॥ द्रव्यथकी प्रभु वेगला, भावथी हृदय मोझार ।। त्रण काळ वंदन करु, स्वास माहे सोवार ॥ ४ ॥ श्रीसीमंधर जिनवरु ए, पुरे वंछित कोड ॥ कांतिविजय प्रभु प्रणमतां, भक्ते बेकर जोड ॥ ५॥ इति ॥ ॥ चोथु ॥ ॥ पूर्व दिशि इशान कूण, पुरुकलमें विजया । नयरी पुंडरिगिणी विहां, सीमंधर थुणीया ॥ १॥ पूर्वायु चोराशी लख, कांचन मय काया ॥ उंचपणे सय धनुश्य पंच, प्रणमे सुरराया ॥२॥ जयवंता जिन विचरंता, केवल दीपक देव ॥ श्री सीमंघर स्वामीजी, देजो तुम पद सेव ॥ ३॥ वीशलाख पूर्व कुंवर वास, भोगवी जिनेश्वर ॥ सठ लाख पूर्व राजऋद्धी, पाली अल वेश्वर ॥४॥ मुनीसुत्रत जिन विहरमान. तइये तुम दीक्षा | तीर्थकर For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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