SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८) पद लहिय स्वामी, महियल द्यो दिक्षा ॥ ५॥ एह अमे ओलग करू, सुणज्यो बीना चंद ॥ बंदणा हमारी वीनंती, जइ कहेज्यो जिनचंद ।६। समवसरण बेठा जिणंद, उपदेशे जिनधर्म ॥ भविक जिद वाणी सुणी, बांधे जे शुभ कर्म ॥ ७ ॥ आठ कर्म चारे कपाय, अढार दोष छंडाय ॥ लही नाण चातीश अतिशया, वाणी गुण कहेवाय ।। ८॥ भरत क्षेत्रनां भविक जन, योछे तुम आशिष । हर्षपणे धर्मलाभ द्यो, पूरो संघ जगीश ॥९॥ इति ॥ ॥ पांच मुं॥ ॥ जय जय त्रिभुवन आदिनाथ, पंचम गति गामो ॥ जय जय करुणा शांत दांत, भविजन हित काभी ॥ १॥ जय जय इंद नरिंद बूंद, सेवित सिरनामो ॥ जय जय अतिशयानंत वंत, अंतर्गत जामी ॥ २॥ पूर्व विदेह विराजताए, श्री सी. मंघर स्वामी ।। त्रिकरण शुद्ध त्रिहुँ कालमें, नितपति करुं प्रणाम ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री सिद्धाचलजीनुं चैत्यवंदन ॥ । सिद्धाचल शिखरे चढो, ध्यानधरो जगदीश ॥ मन वच काय एकाग्रशु, नाम जपो एकवीश ॥ १॥ (१) शत्रुजय गिरि वंदीये, (२) बाहुबलो गुणधाम ॥ (३) मरुदेवने (४) पुंडरिक गीरि, (५) रेवतगिरि विशराम ॥२॥ (६) विमलाचल For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy