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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२२) हाब्रत धारी, तुमची जाउं बलिहारीजी ।मु० ॥ २ ॥ जग जन रंजन भवदुःख भंजन, निरुपाधिक गुण भोगीजी ॥ अलख निरं जन देव दयाळु, आतम अनुभव जोगीजी ॥ मु० ॥ ३ ॥झाना वरणी क्षयथी प्रगटयु, अनोपम केवल नाणजी ॥ लोकालोक प्रकाशक स्वामी, उग्यो अभिनव भाणजी ॥ मु०॥ ४॥ वरसी वसुधा पावन कीधी, देशना सुधारस सारजी ॥ भविक कमक मतिबोध करीने, कीधा बहु उपकारजी ॥ मु० ॥ ५॥ संपुरण तें सिद्धता साधी, वीरमी सकल उपाधिजी ॥ निरुपाधिक ते निजगुण वरीया, अनोपम अव्यावाधजो । मु० ॥ ६ ॥ हरिवंशे विभुषण दोपे, अरिष्ट रतन तनु कान्तिजी ॥ मुख सागर प्रभुदास वंदित, जोता होये भव शांतिजी ।। मुनि० ॥ ७॥ सभेत शिखरे सिद्धि वरीया, सहस पुरुषने साथजी ॥ जीन उत्तम पदने अक्लंबी, रतन थाय सनाथजी ॥ मुनि० ॥ ८ ॥ ॥ श्री नमिनाथजीनुं स्तवन ॥ ॥ थापर वारी मोरा साहिबा, काबुल मत जाजो॥ (अथवा) साना रुपाके सेोगटे सैया खेळत बाजी ॥ ए देशी ॥ निरुपम नमी जोणेसरु, अक्षय सुखदाता ॥ अतिशय गुण अधिकथी, स्वामी जग विख्याता ॥ निरुपम०॥१॥ बार गुणो अरिहंत थकी, उंचो वृक्ष अशोक । भव दव पोडित जंतुने, जाय जोतां शोक ॥ निरु०॥२॥ पीत वरण सिंहासने, प्रभु बेठा छाजे ॥ दिव्यध्वनी For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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