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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२३ ) दीये देशना, नादे अंवर गाजे || निरु० ॥ ३ ॥ छत्र घरे त्रण सुरवरा, चामर वीजाय ॥ भामंडल अति दोषतुं, पुंठे जीनराय ॥ निरु० || ४ || जांजन माने सुर करे, दृष्टि कुसुम केरी ॥ गयणे गाजे दुंदुभी, करे प्रदक्षण फेरी || निरु० ॥ ५ ॥ अष्ट महा पाडिहारे करी, दीपे श्री जगदीश || अष्ट करम हेलां हणी, पाम्या सिद्धि जगीश || निरु० || ६ || नामे नवनिधि संपजे, सेवतां भव दुःख जाय || उत्तम विजय विबुध तणो रत्न विजय गुणगाय ॥ ॥ निरु० ॥ ७ ॥ ॥ श्री नेमनाथनुं स्तवन ॥ ॥ हांरे हुतेा भरवा गइती नदी जमनानुं नीरजा || ए देशी ॥ हांरे मारे नेमि जोणेसर अलवेसर आधारजो || साहिवरे सोभागी गुणमणी आगरु रे का || हां० परम पुरुष परमातम देक पवित्रजी, आज महोदय दरीसण पामे ताहरु रे को ॥ १ ॥ ह तोरण आवी पशु छोडावी नाथजेा, रथ फेरीने बळीआ नायक नेमजी रे लो || हां० देव अटारे ए शुं कीधुं आजजेा, रढीआळी बर राजुल छोडी नेमजी रे ले || २ || हां० संजोगी भाव विजोगी जाणी स्वामी जो, ए संसारे भमता का केहनुं नही रे लो ॥ हां० लोकांतिक वाणी अवधि जाणी मानजेो, बरसीदान दीए तीहां म सही रे लो || ३ || हां० सहसावनमां सहस पुरुषने साथजो भव बळी दुखे छेदण चारित्र आदरे रे लो ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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