SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२४) वस्तु तत्वे रमण करता सारजो, चापनमे दिन अनोपम प्रभु केवल चरे रे लो ॥ ४ ॥ हॉ० लोकालोक प्रकाशक त्रिभुवन भाणजो, त्रिगडे बेसी धरम कहे तीहां जीनवरु रे को ॥ हां. शीवानंदन वरसे सुधारस वाणीजो, आस्वादे भविय चकोर अति सुंदरं रे हो ॥५॥ हां० देशना सांभळी बुजी राजुल नारीजो, निज स्वामीने हाथे संजम आदरे रे लो ॥ हां० अष्ट भवनी पाली पुरण प्रीतजो, पिउ पेहेलां शीव रमणी राजुल ते वरी रे लो ॥६॥ हां० विचरी वसुधा पावन कीधी नाथजो, जग उपगारी साहेब ते देव गुणनिधि रे लो । हां जीन उत्तम पद पंकज अनोपम से. चनो, करतां रतनविजयनी कीरति अति वधी रे लो ॥७॥ ॥श्री पार्श्वनाथन स्तवन । ॥ कोइलो परवत धुंधलारे लो॥ ए देशी।। त्रिभुवन नायक चंदोये रे ले, पुरुषादाणी पासरे जोणेसर । सुरपणी मुरतरु सारीखो रे ले, पुरतो विश्वनी आशरे जीणेसर ॥ जयो जयो पास जीणेसरु रे लो ॥१।। पुष्टालंबन भविकने रे लो, महिमा निधि बावास रे जीणेसर ॥ वासव पुजित वंदोए रे लो, आणी पाव 'उल्लासरे जीणेसर ॥ जय० ॥२॥ श्री जोन दरीसण ते विना रे लो, भमोयो काल पार रे जीणेसर ।। आतम धरम न ओल. हयो रे छो, न यो तत्व विचार रे जोणेसर ॥ जय० ॥३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy