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(१४२)
वीश जो, चौदमे नमो तवस्स बार गणो सही रेलोल.॥४॥हारे मारे पंदरमे नमो गोयमस्स अट्ठावीश जो, नमो जिणाणं चउवीश गणशृं सोळमें रेलोल हारे मार सत्तरमे नमो चारित्त लोगस्स सित्तेर जो, नाणस्सनो पद गणशुंएकावन अढारमें रेलोल. ॥६॥हारे मारे ओगणीशमें नमो सुअस्स वीश पीस्ताळीश जो, वीशमे नमो तित्यस्स वीश प्रभावशुं रेलोल; हारे मार ए तपनो महिमा चारशे उपर वीश जो, पट मासे एक ओळा पूरी कीजीए रै लोल.॥६॥ हारे मारे तप करतां वळी गणीए दोय हजार जो, नवकारवाली वीशे स्थानक भावशुंरे लोल: हारे मारे प्रभावना संघ स्वामीवच्छल सार जो, उजमणा विधि कीजे विनय लीजीए रे लोल.॥७॥ हारे मारे तपनो महिमा कहे श्री वीर जिनराय जो, विस्तारे इस संबंध गोयम स्वामीने रे लोल; हारे मारे तप करतां वळी तीर्थंकर पद होय जो, देव गुरु इम कांति स्तवन सोहामणो रे लोल. ॥८॥
॥ दीवाळी- स्तवन ॥ (धारणी मनावे रे मेघकुमारने रे-ए देशी.) दीवाळीने दहाडे रे वीरप्रभु पामोया रे, अनुपम पद निर्वाण; तेणे दिन देवो रे सौ मळी एकठा रे, आव्या अपापापुरी ठाण. दी० ॥१॥ तिहां प्रभु वीर रे मोक्ष जवा थकी रे, कर्यु पापापुरी नाम: अनुक्रमे आव्यारे नंदीश्वर गिरि रे, करवा कल्याणकनां काम.दी०
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