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(१४१)
एह उपरेजी ॥ ६॥ श्री विमलेसर जक्ष, होजो मुज परतक्ष आ०॥ हुं किंकर छु ताहरोजी ॥ पाम्यो तुहिज देव, निरंतर करुं हवे सेव ॥ आ० ॥ दिवस वल्यो हवे माहरोजी ॥ ७॥ विनति करं एह, धरजो मुजशुं नेह ॥ आ०॥ तमनें शुं कहिये क्लीवलीजी॥ श्री लक्ष्मीविजय गुरुराय, शिष्य केसर गुण गाय ॥ आ० ॥ अमर नमे तुझ ललीललीजी ॥८॥ इति ।
॥ श्री वीशस्थानकनुं स्तवन.॥ ॥ हारे मारे ठाम धरमना साडापचवीस देश जो-ए देशी.॥ ____ हारे मारे प्रणमुं सरस्वती मागुं वचन विलास जो, वीशे रे तप स्थानक महिमा गाइशुं रे लोल; हारे मारे प्रथम अरिहंत पद लोगस चोवीश जो, बीजे रे सिद्ध स्थानक पंदर भावशुं रे लोल. ॥१॥ हारे मारे जीजे पवयणशुं गणो लोगस सात जो, चउथे रै आयरियाणं छत्रीशनो सही रे लोल; हारे मारे थेराणं पद पांच दश उदारे जो, छ8 रे उवझायाणं पचवीशनो सही र लोल. ॥२॥ हारे मारे सातमे नमो लोए सव्व साहु सत्तावीश जो, आठमे नमो नाणस्स पंचे भावशुं रे लोल; हारे मारेनवमे दरिसण सडसठ मनने उदार जो, दशमे नमो विणयस्स दश वखाणीए रे लोल. ॥३॥ होरमारे अग्यारमे नमो चारित्तस्स लोगस सत्तर जो, बारमे नमो बंभस्स नव गणो सही रेलोल; हारे मारे किरियाणं पद तेरमे वळी पच
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