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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४० ) यक ए मंत्र ॥ भ० ॥ उत्तमसागर पंडित शिष्य, सेवे कान्तिसागर निशदिश । भवि सांभलो ॥५॥ इति ॥ ॥अथ श्री सिद्धचक्रजीचें स्तवन पांचमुं॥ ॥ आछे लालनी देशी ॥ ॥ समरी शारदा माय, प्रणमी निज गुरु पाय ॥ आछे लाल ॥ सिद्धचक्र गुण गायशुंजी ॥ ए सिद्धचक्र आधार, भवि उतरे भवपार ॥ आ०॥ते भणी नवपद ध्यायशुंजी ॥१॥ सिद्धचक्र गुणगेह, जस गुण अनंत अच्छेह ॥आ०॥ समयां संकट उपशमेनी॥ लहिये वंछित भोग, पामी सवि संजोग ॥ आ० ॥ सुरनर आवी सहु नमेजी ॥ २॥ कष्ट निवारे एह, रोग रहित करे देह ॥ आ० ।। मयणासुंदरी श्रीपालनेजी ॥ ए सिद्धचक्र पसाय, आपदा दूरे जाय ॥ आ० ॥ आवे मंगल मालनेजी ॥३॥ ए सम अवर न कोय, सेवे ते सुखीयो होय ॥ आ० ॥ मन वच काया वश करीजी ॥ नव आंबिल तप सार, पडिकमणुं दोय वार ।। आ० ॥ देववंदन त्रण टंकनांजी ॥ ४॥ देव पूजो त्रण वार, गण[ ते दोय हजार आ०॥ स्नान करी निर्मल जलेजी ॥ आराधे सिद्धचक्र, सानिध्य करेतेनी शक्र ॥आ०॥ जिनवर जन आगे भणेजी ॥५॥ ए सेवो निशिदीश, कहीये वीशवा वीश ॥ आ० ॥ आल जंजाल सवि परिहरोजी ॥ ए चिंतामणी रत्न, एहनां कीजें जन ॥ आ०॥ मंत्र नही For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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