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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५१) मांहि एककं ॥ एक नेककी नहि संख्या, नमो० ॥ ११ ॥ अजर अपर अलख अनंत, निराकार निरंजनं ॥ ब्रह्म ज्ञान अनंत दर्शन, ॥ नमो० ॥ १२ ॥ अचल सुखको लहेरमां, प्रभु लीन रहे निरं। तरं ॥ धर्म ध्यानथी सिद्ध दर्शन, ॥ नमो० ॥ १३ ॥ ध्याने धूप मने पुष्पर्श, पंच इंद्र हुताशनं ॥ क्षमा जाप संतोष पूजा. पूनो देव निरंजनं ॥ १४ ॥ नमो सिद्ध निरंजनं ॥ इति ॥ ॥ आवतो चोवोसी, चैत्यवंदन ॥ श्री पद्मनाम पहेला निणंद, श्रेणोक नृपजीव ॥ सुरदेव बीजा नमुं, सुपास श्रावक जीव ॥ १॥ श्री सुपार्थ त्रीजावळी, जीव कोणिक उदायो । स्वयंपभु चौथा जिणंद, पोटिल मुनिभाई ॥ २ ॥ सर्वानुमूति जिन पंचमाए, दृढायु श्रावक जाण ॥ देवश्रुत छहा निणद, श्रीकार्तिक शेठवखाण ॥ ३ ॥ श्रीउदय जिन सातमाए, शंखश्रावक जीव ।। श्रीपेढाल जिन आठमा, आणंद मुनि जीव ॥४॥ पोटिल नवमा वंदिएए, जीव जेह सुनंद ॥ शतकोरति दशमा जिणंद, सत्य श्रावक आणंद ॥५॥ सुत्रत जिन अगियार माए, देवकी राणी जीव ॥ श्रीअममजिन वारमा, जीव 'केशवगुण खाण ॥ ६॥ निष्कशाय जिन तेरमाए, सत्यकी विद्याधर ।। निष्पुलाक जिन चौदा, बळभद मुहंकर ॥७॥ निर्मम जिन पंदरमाए, जोवसुळसा भावी ॥ चित्रगुप्त जिन साळमा, श्रीरोहिणी १ कृष्ण. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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