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(५०) थइ उजमाल ॥३॥ नाम जपंतां जिनतj, दुरगति दूरे जाय; ध्यान ध्याता परमात्मनु, परम महोदय थाय ॥ ४ ॥ जिनवर नामे जश भलो, सफल मनोरथ सार; शुद्ध मतिती जिनतणी, शिवमुख अनु. भव धार ॥ ५॥
॥ सिझनगवाननु चैत्यवंदन ॥ जगत भूषण विगत दूषणे, प्रणव प्राण निरूपकं ॥ ध्यान रूप अनुपम उपम, नमो सिद्ध निरंजनं ॥ १ ॥ गगन मंडल मुक्ति पदा, सर्व उद निवासनं ॥ ज्ञान ज्योति अनंत राजे, ।। नमो०॥ ।। २ ॥ अज्ञान निद्रा विगत वेदन, दलित मोह मेराउखं ।। नामगोत्र निरंतराय, ॥ नमो० ॥३॥ विकट क्रोश मान योषा, माया छाभ विसर्जनं ॥ रागद्वेष विमनोत अंकुर, ॥ नमो० ॥४॥ विमल केवल ज्ञान लेोचन, ध्यान शुक्ल समोरितं ॥ योगिनामिति गम्यरूपं, ।। नमो० ॥ ५॥ योगमुद्रा सम समुद्रा, करी पल्यंकासनं ॥ योगिनामिति गम्यरूपं, ॥ नमो० ॥ ६॥ जगत जनके दास दासी, तास आश निरासनं ॥ योगिनामिति गम्यरूपं ॥ नमो० ॥ ७ ॥ समय समकित दृष्टि जनकी, सोय योगी अयोगिकं ॥ देखिता मिलिन होवे, ॥ नमो० ॥ ८॥ सिद्ध तीर्थ अतीर्थ सिद्धा, भेद पंच दशादिकं ॥ सर्व कर्म विमुक्ति नेतन, ॥ नमो० ॥ ९ ॥ चंद्र सूर्य दोप मणीकी, ज्योति तेने ओलंगीफनं ॥ तज्यो तिथी कोई अपर ज्योति, ॥ नमो० ॥१०॥ एक माह अनेक राजे, नेक
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