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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५२ ) जीवभावि ८ ।। समाधि जिन सत्तरमा, रेवती श्राविका जाण ॥ श्रीसंवर जिन अढारमा, जीव शतानिक वखाण || ९ || श्री यशोधर ओगणीसमा, जीव कृष्ण द्वीपायन; विजयनाम जिन बीसमा, जीवकरण माहेण ॥ १० ॥ एकत्रीसमा श्रीमलनाम, जोव नारदनो कहिये || अंबड श्रावक जीव देव, बाबीसमा लहीए । ११ ।। अनंतवीर्य तेवीसमा, जीव अमरनो जेह ॥ भद्रकर जिनचे वीशमा, स्वातिबुद्धि गुणगेह ||१२|| चोवीसे जिनवरा, होशे आते काले || भाव सहित जे बांदशे, कर जोडीने माळे|| १३|| लंछन वर्ण प्रमाण आयुष, अंतर सवि सरखा । सांप्रत जिन चाविस परे, चढते सवि निरख्या || १४ || पंचकल्याणक तेहना, हाशे एहन दिवस || वीरबिमळ पंडिततणो, ज्ञानविमल सूरीश ॥ १५ ॥ || सामान्य जिन चैत्यवंदन ॥ ॥ जय जय तुं जिनराज आज, मळीओ मुज स्वामी; अविनाश अकलंक रुप, जग अंतरजामी || १|| रूप रूपी धर्म देव, आतम आरामी चिदानंद चेतन अचिंत्य, शिवलीला पामी ॥ २ ॥ सिद्ध बुद्ध तु बंदतां सकळ सिद्धि वर बुद्ध, रमो प्रभु ध्याने करी, प्रगटे आतम ऋद्ध || ३ || काळ बहु स्थावर गयो, भमीयो मी: विकलेद्रिय मांही बस्यो, स्थिरता नहीं क्यांही ॥ ४ ॥ तिर्यच पंचेद्रिथ मांझी देव, करमे हुं आव्यां, करी कुकर्म नरके For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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