________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(५३) गयो, तुम दरीशन नहि पायो ॥५॥ एम अनंत काळे करी ए, पाम्या नर अवतार; हवे जग तारक तुंही मळयो, भवनल पार उतार ॥६॥
श्री जिन चैत्यवंदन ॥ अद्याभवत सफलता नयन द्वयस्य, देव त्वदीय चरणां बुन वीक्षणेन ॥ अद्य त्रिलोक तिलकं प्रतिभासतेमे, संसार वारि घिरयं चलक प्रमाणम् ॥ १॥ कलेवं चंद्रस्य कलंक मुक्ता, मुक्तावली चारु गुण प्रसन्ना ॥ जगत्रया स्यामिमंत ददाना, जैनेश्वरी कल्प लतेव मूर्ति ॥२॥ धन्योहं कृत पुण्योई, निस्तीर्णाहं भवार्ण वात ॥ अनादि भव कांतारे, दृष्टोयेन श्रुतो मया ॥ ३ ॥ अद्य मक्षालितं गोत्र, नेत्रेच विमलिकृतं ॥ मुक्तोहं सर्व पापेभ्यो, जिनेंद्र तव दर्शनात् ॥ ४॥ दर्शनात दुरित ध्वंस: वंदनात् वंछित पदः॥ पूजनाद पुरुष श्रीदुः, जिनःसाक्षात् सुरद्रुमः ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ श्रथ जिन पूजार्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ जिनरूपे जिननायके, द्रव्ये पण तिमहि ॥ नाम स्थापना भेदयी, प्रगट जगमर्माहि ॥१॥ अध्यातमथी जोडिये, निक्षेपा चार।। तो प्रभु रूप समान भाव, पामे निरधार ॥२॥ पावन आतमने करे ए, जन्म जरादिक दूर ॥ ते प्रभु पूनाध्यानथी, राम कहे मुखपूर ॥ ३ ॥ इति ॥
For Private And Personal Use Only