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(११८) जीवडो रे, रुळीओ चौगति मोझार ॥ जनम मरणादि वेदनारे, सही ते अनंत अपार ॥ जी० ॥ ७ ॥ एवी विटंबन वेदनारे, टाळो श्री जिनराज || बांहे ग्रहीने तारीए रे. सारो सेवक कान ॥ जी० ॥ ८ ॥ धरम जिनेश्वर स्तवतां थकां रे, पोहोती मननी श्राश ॥ जीन उत्तम पद सेवतां रे, रतन लहे शीववास ॥ ॥ जी. ९॥
॥श्री शांतिनाथनुं स्तवन ॥ .. ॥ ढंढण ऋषिने बंदणा हुँ वारी ।। ए देशी ॥ अचिरानंदन वंदीए हुं बारी । गुणनिधि शांति जीणंद रे हुं वारी लाल ॥ अभयदान गुण आगरु हुं वारी, उपशम रसनो कंदरे हुं वारी लाल ॥ अचिरा० ॥१॥ मारी मरकी अति वेदना हुँ वारी, पसरी सघले देशरे ॥ हुं वारी लाल ॥ दुखदायक अति आकर हुं बारी, पामे ते लोक कलेश रे ॥ हु० ॥ अ० ॥ २ पुण्यानुबंधी पुण्यथी हुँ वारी, उपन्या गरभ मझार रे ॥ ९० शांति प्रति मन पदे हुं वारी, हुआ जयजयकार रे ॥ हुं० ॥ अचिरा० ॥३॥ दोय पदवी एके भवे हुं वारी, षोडशमो जगदीशरे ॥ हुं०॥ पंचम चक्री गुणनिलो हुँ वारी, पर उठी नामुं शीशरे ॥ ९॥०॥ ॥ ४ ॥ दीक्षा ग्रहे दीन ते थकी हुं वारी, चउनाणी भगवानरे।। ॥ हुं० ॥ धनधाति करपना नाशयो हुँ वारी, पाम्या पंचम शान रे ॥ हुं० ॥ अ० ॥५॥ तीरथपति विचरे जीहां हुंवारी, त्रिगहुं रचे सुर रायरे ॥ ९० ॥ समवसरणे दीए देशना हुं वारी, सुणतां भव दुःख जाय रे ॥ ९ ॥ १०॥६॥ पणवीशसते आगळां हूं
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