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(११९) बारी, जोयण लगे ते जाणरे हु वारी लाल ॥ स्वचक्र परचक्रनां हुं वारी* ॥ अ० ॥ ७॥ जीव घणा तीहां उधरी हुं वारी. शीब. सुर सनमुख कीध रे ॥ १० ॥ अक्षय सुख जोहां शाश्वतां हुवारी, अविचल पदवी दीध रे ।। हुं० ॥ अ० ॥ ८ ॥ सहस मुनि साथे वर्या हुं वारी, समेतशिखर गिरि सिधरे ॥ हु० ॥ उत्तम गुरुपद सेवतां हुं बारी, रतन लहे नव नीघरे ॥ हुँ० ॥ अ० ॥९॥
॥ श्री कुंथुनाथर्नु स्तवन ॥ ॥ कत तमाख परिहरो ॥ ए देशी ॥ कुंथु जिणेसर साहेबो, सदगतिना दातार मेरे छाल ॥ श्राराधेो कामित पुरणो, त्रिभुवने जन आधार मेरे लाल ॥ सुगुण सनेही साहेबो ॥ १॥ दुरगति पडतां जंतुने. उदरवा दीए हाथ ॥ मेरे ॥ भवोदधि पार उता. रवा, गुणनिधि तुं समरथ ॥ मेरे० ॥ मुगुण ॥२॥ भर बीजेथी बांधियु, तीर्थकर पद सार ॥ मेरे० ॥ भव सर्वनी करुणाये करी, वली थानक तपथी उदार ॥ मेरे ॥ स० ॥ ३ ॥ उपकारी अरि. इंतजी, महिमावत महंत ॥मेरे०॥ निःकारण जग वच्छलु, गीरुभो ने गुणवंत ॥मेरे०॥ सु० ॥४॥ ग्यानानंदे पुरणो, भाखे धर्म उदार
मेरे०॥ स्यादवाद सुधारसे, वरसे ज्यु जलधार |मेरे०।मु०॥५॥ अतिशय गुण उदये थकी. वाणीनो विस्तार || मेरे || उत्तमविजय विबुधना शीश,कहे रतनविजय सुजगीशरे ||मारा अंतरजामी। बारे परखदा सांभले, जोयण लगे ते सार ।। मेरे० ।मु०॥६॥ सारथवाह शीवपंथनो, आतम संपदा इश || मेरे० ॥ ध्यान भुवनमा
* सातमी गाथामां एक चरण त्रुटे छे. ते कोइ पासे होयतो अमने लखी मोकलशो अने पुस्तकमा सुधारी पांचजो.
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