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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४९ ) सुधारसेंरे, चन्द रह्यो पण दूररे ॥ तिम प्रभु करुणा 'दृष्टियीरे, लहिये सुख महमूर ॥ ए० ॥ २ ॥ वाचक जश कहे तिम करोरे, रहिये जेम हजूररे || पीजे वाणी मीठडीरे, जेहवो सरस खजूर ॥३॥ श्रीचन्द्रप्रभ जिन स्तवन । (भोला शंभु, (अथवा ) जीरे मारे श्री जिनवर भगवान ए देशी ) मोरा स्वामी चन्द्रप्रभ जिनराय, विनतडी अवधारीयें जीरेजी ॥ मोरा स्वामी तुम्हे छो दीनदयाल, भवजलधी मुज तारीयें जी० ॥ १ ॥ मोरा स्वामी हुं 'आव्यो तुज पास, तारक जाणी गहगही जी० ॥ मोरा स्वामी जोतां जगमां दीठ, तारक को बीजो नही जी० ॥ २ ॥ मोरा स्वामी अरज करतां आज, लाज वर्धे कहो केणि परी जी० ॥ मोरा स्वामी जय कहे 'गोपयतुल्य, भवजलधी करुणा धरी जी० ॥ ३ ॥ श्रीसुविधिजिन स्तवन । ( राग मल्हार ) जिम प्रीति चन्द चकोरने, जिम मोरने मन मेहरे ॥ अम्हने ते तुम्हभुं उल्लशे, तिम नाह नवलो नेह | सुविधि जिणेसरु, सांभलो चतुर सुजाण । अति अलवेसुरु || १ || अणदीठे 'अलजो १ तारनार छो एम जाणी हर्षभर तमारी पासे आव्यो . २ गायनी खरी सरखो. ३ मुंझवण. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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