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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४८ ) श्रीपदमप्रभ जिन स्तवन । (आज अधिक भावे करी, (अथवा) साहेब बाहुजिनेश्वर विनवू. ए देशी) पदमप्रभ जिन सांभलो, करे सेवक ए अरदास हो ॥ पांति बेसारिओ जो तुम्हें, तो सफल करओ आश हो ॥ ५० ॥१॥ जिन शासन पांति तें ठवी, मुज आप्यु समकित थाल हो ॥ हवे भाणा खडि खडि कुण खमे, शिव मोदक पीरसे रसाल हो ॥५० ॥२॥ गज ग्रासन गलित सीथिं करी, जीवे कीडीना वंश हो । वाचक जश कहे इम चित्त धरी, दीजे निज सुख एक अंश हो ॥ ५० ॥३॥ श्रीसुपास जिन स्तवन । (ए गुरु वाल्होरे, (अथवा ) मारे दीवाळीरे थई आज, प्रभु मुख जोवाने ए देशी) श्रीसुपास जिनराजनोरे, मुख दीठे सुख होईरे ॥ मानु सकल पद में लह्यारे, जोतो नेह नजरि भरि जोई ॥ ए प्रभु प्यारोरे, माहारा चित्तनो गरणहार मोहन गारोरे ॥१॥ "सिंचे विश्व क्रोडो रत्नो आपी जगतने देवाथी मुक्त कर्यु छे. पण मारे तो फक्त त्रण रत्नोज (ज्ञान, दर्शन, चारित्र) जोइये छ माटे ते आपो एटले आनंद. ८ पंगतमां. ९ चंद्रमा वेगळो छे छतां अमृत रसथी पृथिवीने सींचे छे. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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