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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९६ ) हो, केसर चंदन 'मृगमदे, स० सुंदर आंगी बनावीहो ॥ १॥ सहज मलूणो म्हारो, शमसुखलीनो म्हारो, ग्यानमां भीनो म्हारो साहियो, सहियर म्हारी जयो जयो प्रथमजिणंदहो।।ए आंकणी॥ धन्य मरुदेवी कुखने स० वारीजाउं वार हजारहोः सर्गशिरोमगीनें तजी, स. जिहां प्रभु लीए अवतारहो ॥ सह ॥२॥ दायक नायक जन्मथी, स० लाज्यो 'सुरतरु वृंदहो, युगला धरम निवारणो स० जे थयो प्रथम नरिंदहो ॥ सह० ॥३॥ लोकनीति सहु शीखवी, स० दाखवा मुक्तिनो राहहो; राज्य भळावी पुत्रने, सः ॥ थाप्यो धर्म प्रवाह हो. ॥ सह० ॥ ४ ॥ संयम लेइ संचर्यो, स. वरस लगे विणआहारहो; शेलडी रस साटे दीओ, स० श्रेयांसने मुख सारहो ॥ सह० ॥ ५॥ मोटा महंतनी चाकरी, स० निष्फळ कदिय न थायहो ॥ मुनिपणे नमि विनमी कर्या, स० विणमा खेचरराय हो. ॥ सह० ॥ ६॥ जननीने कीओ भेटणो, स० केवळरत्न अनूपहो; पहिली माता मोकली, स० जोवा शिवबहु रुपहो ॥ सह० ।। ७ ॥ पुत्र नवाणुं परिवयों, स. भरतना नंदन आठहो; आठकरम अष्टापदे, योगनिरोधे नाठहो ॥ सहः॥८॥ तेहनो विब सिद्धाचले, स० पूजो पावन अंगहो; क्षमाविजय जिन निरखतां, स० उछळे हरख तरंगहो ॥ सह० ॥९॥ १ कस्तूरी. २ कल्पवृक्ष. ३ मार्ग. ४ वदले. ५ पुत्र ६ अष्टापद तीर्थ उपर. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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