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(१९७) ॥श्री शांतिनाथ स्तवन ॥ ॥ आवो आवो पासजी मुज मलीआरे-ए देशी ॥ शांति प्रभु विनति एक मोरी रे, तारी आंखडी कामणगारी ॥ शांति ॥ विश्वसेन राजा तुज ताय रे; राणी अचिरादेवी माय २॥ तुं तो गजपुर नगरीनो राय ॥ शां० ॥१॥ प्रभु सोवन कांति विराजे रे, मुकुटे हीरा मणि छाजे रे ।। तारी वाणी गंगापूर गाजे । शां० ॥२॥ प्रभु चालीश धनुषनी काया रे, भवि जनना दिलमां भाया रे॥ कांइ राज राजेसर राया ॥ शां० ॥ ३ ॥ प्रभु माहारा छो अंतरजामी रे, करुं विनति हुँ शिरनामी रे ।। चउद राजना छो तुमे स्वामी ॥ शांति० ॥ ४ ॥ प्रभु पर्षदा बार मांहे रे, दीये देशना अधिक उच्छाहें रे ॥ प्रभु अंगीए भेटया उमाहे ॥ शां॥५॥ श्रावक श्राविका बहु पुण्यवंता रे, शुभ करणी करे महंता रे ॥ शांतिनाथना दरिसण करता ॥ शां० ॥ ६॥ संवत अढार अठ्ठागुंओ सार रे, मास कल्प कर्यो तिणि वाररे ॥ मूरि मुक्तिपदना धार ॥ शां० ॥ ७॥ इति ॥
॥श्री नेमिजिन स्तवन ।। ॥ सखी तुमे देखोरै साम बना-ए देशी.॥ सेहेसावनमां एक दिन स्वामी, नेमि समोसर्या ॥ श्री पति साथे राजुल बंदी, बोले पीयु प्यारारे ॥ वालाजी अमे आव्यारे आश भयी ॥१॥ जान सजी करी जादव जुक्ते, तोरण रण रझल्या॥ मंदिर देखी मोहन चाल्या, मेंली आशभर्या रे ॥वालाजी० ॥२॥
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