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( १९८)
आठ भवंतर प्रेम प्रकाशी, नवमे निराश कर्या ।। संयम साधन सांइ सलुणा, अमने निराश कर्या रे ॥ वालाजी० ॥३॥ परहरी प्रीतम नेम रसीले, राजुल रोप भर्या ॥ निधणीआती नारी सुणीने, अबुध जनम उधर्या रे वालाजो० ॥ ४ ॥ दिन पंचावन प्रेम बिलुधा, वरस विजोग वल्या ॥ दिन दयालु दरशन फरीने, पुरण आज ठर्या रे ॥ वालाजी० ॥ ५ ॥ भोग सरोग विजोग भवोभव, देखी दिलमां ठर्या ॥ सासय सुख सगपण मेल्युं, शिरपर हाथ धर्या रे ॥ वालाजी० ॥६॥ प्रितम पालव पलक न छोडं, पतिव्रताए वर्या ॥ समता स्वामिणी भोगवे भापनि, न रहे खीगव छा रे ॥वालाजी० ॥७॥ केवळलच्छीमां भाग हमारो, अंतर हेळे हल्या ॥ एम वदंति पुनःपनोति, संजम लेइ विचर्या रे ॥ वालाजी० ॥ ८ ॥ केवळ पामी राजुल नेमि,सादि अनंत मल्या|श्री शुभवीर रसिला साहेव, सपरे काज सर्या रे ॥ वालाजी० ॥९॥
॥ श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥ मोहन मुजरो लेजो राज, तुम सेवामां रेहेशु ॥ वामानंदन जगदा वंदन, जेह सुधारस खाणी ॥ मुख मटके लोचनके लटके, लोभागी इंद्राणी ॥ मोहन० ॥१॥ भव पटण चीहु दीशी चारे गति, चोराशी लाख चौटा ॥ क्रोध मान मायाने लोभादिक, चोवटीआ अति खोटा ॥ मोहन० ॥२॥ मिथ्या मेतो कुमति पुरोहित, मदनसेनाने तोरे ॥ लांच लइ लाख लोक संतापे, मोहकंदर्पने जोरै ॥ मोहन० ॥३॥ अनादि निगोदनो बंधी खाणो, तृष्णा तापे
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