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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११४) दनी, मुरती सुंदर देख लालरे ।। रूप अनुत्तर मुरथकी, अधिक गुणो ते पेख लालरे ॥ श्री० ॥ १॥ अंगना अंके धरे नही, हाथे नही करवाल लालरे ॥ विकारे वजोत जेहने,मुद्रा अविही रसाळ लालरे ॥ श्री० ॥२॥ वाणी सुधारस सारखी. देशना दोए जलधार लालरे ॥ भवदव ताप समावकुं, त्रिभुवन जन आधार लाकरे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ मिथ्या तिमिर विनाश तो, करता समकिन पोष लालरे ॥ ज्ञान दोवाकर दीपतो, वरजीत सघला दोष लालरे श्री० ॥ ४ ॥ परमातम प्रभु समरतां,लहीए पद निरवाण लालरे । पामे द्रव्य भाव संपदा, एवी आगम वाण लालरे ।। श्री० ॥ ५ ॥ जैनामगथी जाणीयु, विगती जग गुरुदेव लालरे ॥ कीरपा करी मुन दीजीए, मागु तुम पद सेव लालरे ॥ श्री० ॥६॥ तुम दरशनयी पामीसं, गुणनिधि आनंदपुर लालरे। आज महोदय में लह्यो,दुःख गयो सवि दुर लालरे ।। श्री० ॥ ७॥ विष्णुनंदन गुण नीलो, विष्णु मात मल्हार कालरे ॥ अंके खड्गी दीपतुं,गुणमणीनो भंडार लालरे ॥ श्री० ॥ ८ ॥ समेतशिखरे सिदि वर्या, पाम्या भवो. दधि पार लालरे ॥ जिन उत्तम पद पंकजे, रवन यधुप झंकार लालरे॥ श्री० ॥९॥ ॥ श्री वासुपूज्यस्वामीनुं स्तवन ॥ ॥ मारो पेउ ब्रह्मचारी ने राजुलनारी (अयवा) एम कोइ सिद्धिचर्या मुनीराया ॥ ए देशी ॥ वासुपूज्य जिन अंतरजामी, For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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