SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११३ ) ॥ श्री शीतलनाथनुं स्तवन ॥ 1 || देशी ललनानी ॥ ए देशी । शीतळ जीनपति सेवीए, दशमेा देव दयाल कलना || शितल नाम छे जेहनुं, शरणागत प्रतिपाल छलना || शीतल० ॥ १ ॥ बाह्य अभ्यंतर शीतळु, पावन पुरणानंद लकना || प्रगट पंच कल्याणके, सेवे सुरनर हृद छलना ॥ शीतल० ॥ २ ॥ वाणी सुधारस जलनिधि, वरसे ज्युं जलधार कलना || त्रिगटे चउमुख देशना, करवा भवि उपगार ललन | ॥ शीतल० ||३|| मिथ्या तिमिर उच्छेदवा, तीव्र तरणी समान ललना समकित पेष करे सदा, आपे वांछित दान ललना ॥ शीतल० ॥४॥ अवमोचन अळवेसरु, मुज मन सरेश्वर हंस ललना || अविलंबन भव स्तवने, देव मानुं अवतसं ललना || शीतल० ॥ ५ ॥ अष्टा दर्श देोषे करी, रहित थयो जगदीश लखना | जोगीश्वर पण जेनां, ध्यान धरे निशदीश ललना || शीतल० || ६ || ध्यान वनमा ध्याइए, तो होए कारण सिद्ध छलना || अनुभवे आतम संपदा, प्रगटे आतम ऋद्ध ललना ॥ शी० ॥ ७ ॥ कोड गये सेवा जेहनी, देव करे करजोड ललना || वे निर्जरानुं फळ लहे, कुण करे जेहनी होड ललना ॥ शीतल० ॥ ८ ॥ जीन उत्तम अवलंवने, पग पग ऋद्धि रसाळ चलना || रतन अमुलख ते बहे, पामे मंगळ माळ चलना || शीतळ ० ॥ ९ ॥ ॥ श्री श्रेयांसनाथनुं स्तवनं ॥ || महाविदेह क्षेत्र सेाहामणुं ॥ ए देशी || श्री श्रेयांस जीणं - For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy