________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ११२ )
॥ श्री सुविधिनाथजी नुं स्तवन ॥
"
O
॥ अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी ॥ ए राग ॥ सुविधि मेसर साहेब सांभळे, तुमे छ। चतुर सुजाणोजी ॥ साहेब सनमुख नजरे जायतां बाधे सेवक वानोजी ।। सुविधि० ॥ १ ॥ भव मंडपम रे भमतां जगगुरु, काल अनादि अनंताजी ।। जनम मरनां ते दुःख आकरां, हजीअ न आव्या अंताजी || सुविधि || २ || छेदन भेदन वेदन आकरो, गुणनिधि नरक महारोजी | खेत्र कुंभी वैतरणी वेदना, कथतां नावे पारोजी || सुविधि० ॥३॥ विवेक रहित विकलपणे करी, न लह्यो तत्व विधारोजी ॥ गति तिर्यचमां रे परवश पणे करी, सहां दुःख अपारोजी || सुविधि ॥ ४ ॥ विषया संगे रे रंगे राचीओ, बंधाणा मोह पासोनी ॥ अमरी संगे सुरभव हारीओ कीधा दुरगति वासाजी || सुविधि ॥ ५ ॥ पुन्य महोदय जगगुरु पामीओ, उत्तम नर अवतारोजी ॥ आरज खेत्रे रे सामग्री घरमनी, सदगुरु संगति सारोजी ।। सुविधि ॥ ६ ॥ स्याना नंदेरे पुरण पावतेा, तीरथपति जीनराजोजी ॥ शुष्टालंबन करतां जगगुरु, सीध्यां सेवककाजोजी || सुविधि ॥ ७ ॥ नाम जपंतां रे सवि संपत्ति मछे, स्तवतां कारण सीधजी || जीन उत्तम पद पंकज सेवतां, रतन लहे नव निधोजी || सुविधि ● ॥ ८ ॥
For Private And Personal Use Only