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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११५) भणषु शिरनाभी रे ॥ मारा अंतरजामी ॥ त्रिकरण जोगे ध्यान तुमारं, करतां भव भय वारु रे ॥ मारा० ॥१॥ चात्रीस अतिभय शोभा कारी, तुमची माउं बलिहारी रे ॥ मारा० ।। ध्यान दिनाणे शक्ति प्रमाणे, सुरपति गुण वखाणे रे ।। मा० ॥२॥ देशना देतां तखत विराजे, जलधरनी पेरे गाजेरे ॥ मा. वाणी सुधारस गुणमणी खाणी, भाव धरी सुणे पाणीरे ।। मा० ॥३॥ दुविध धरम दयानिधि भाखे, हेतु जुगते प्रकाशे रे ॥ मा० ॥ मेदरहित निरखीने मुजने, तो जग वधशे कीर्ति तुजने रे ॥मा०॥ ॥ ४ ॥ मुद्रा सुंदर दोपे तहारी, रुप माह्या अमर नरनारी रे ॥ मा० ॥ साहेब समतारसनो दरिओ.मार्दव गुण जे भरीओ रे॥ ॥ मारा।। ५ ॥ सहजानंदी साहेव साचो, जीम होये हीरो साचो रे । मारा० ॥ परमातम प्रभुजो ध्याने ध्यावो, तो अक्षय सोला पावो रे ॥ मारा० ॥ ६॥ रक्तवरण दीपे तनु कान्ति, जोबां होय भव शांतिरे ॥ मारा० ॥ उत्समविजय विबुधनो शीश, कद्दे रवनविजय सुजगोश रे ॥ मारा अंतरजामी ॥७॥ ॥ श्री विमलनाथनुं स्तवन ॥ झुमखड़े झुमी रधु रे।। (अथवा) यात्रा नवाणुं करीए सलुणा। ॥ देशी ॥ विमल निनेसर सुंदरुं रे, निरुपम छे तुम नाम ।। मीोसर सांभरे । पुरणानंद परमेसरु, आतम संपदा स्वामी ॥ बीणेसर० ॥१॥ निरागौशु नेहलो, मज मन करवा भाव ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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