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( ९५ )
॥ श्री केवल ज्ञाननी स्तुति ॥ || मह उठो बंदू || ए देशी ॥
॥ छत्रत्रय चामर, तरु अशोक सुखकार || दिव्य ध्वनि दुंदुभी, भामंडल झलकार || वरसे सुर कुसुमें, सिंहासन जिन सार ॥ वंदे लक्ष्मीसूरि, केवलज्ञान उदार ॥ १ ॥ इति ॥
|| वर्धमान तपनी स्तुति ॥
|| वर्धमान आंबिल तप आदरो, चोबीश जिननी पूजा करो || अंतगड आगम सुणो बखाण, सिद्धाइ देवी करे कल्याण ॥ १ ॥ ( आ स्तुति चार वखत पण कहेवाय छे.
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॥ अथ श्रीसीमंधर जिन स्तुति ॥
॥ सीमंधर स्वामी निर्मला, तुम ज्ञान उपनुं केवला || सीमं • धर स्वामी तार तार, मुज आवागमन निवार वार ॥ १ ॥ सीतेरशेो मिनवर बंदीये, जस नामें पाप निकंदीयें || सांप्रत जिन सोहे बीश सार, ते भवियण वंदो वारं वार || २ || जिनवाणी साकर सेटी, पीतां जाणे अमृत वेळडी || जिन आगम सागर सेवतां, कहो विद्या रपन से हावता || ३ || सीमंधर जिनपद अनुसरी, श्रीलं प्रत्ये बहु न करी || इनका भासा शासन सूरि, धो बंछित देवी पतंजरी ॥ ४ ॥ इति ॥
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