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नुयोग जिहां गुण खाण, आतम अनुभव गण ।। सकळ पदारथ ।। त्रिपदी जाण, जोजन भुमि पसरे वखाण, दोष बत्रीश परिहाण ॥ केवली भाषित ते श्रुत नाण, विजयलक्ष्मी मरि कहे बहुमान, चित्त धरजो ते सयाण ॥ १॥ इति ॥
॥ श्री अवधिज्ञाननी स्तुति ॥
॥ शंखेश्वर साहिब जे समरे ॥ ए देशी ॥ ॥ ओहीनाण सहित सवि जिनवरू, चवि जननी कुंखे अवतरू ॥ जस नामे लहीये सुख तरू, सवि इति उपद्रव संहरू ॥हरि पाठक संशय संहरु, वीर महिमा ज्ञान गुणायलं ॥ ते माटे प्रभुजी विश्वभरू, विजयांकित लक्ष्मी मुहंकरूं ॥१॥ इति ॥
॥ श्री मनः पर्यव ज्ञाननी स्तुति ॥
॥ श्री शंखेश्वर पास जिनेश्वर ॥ ए देशी ॥ ॥ प्रभुनी सर्व समायिक उच्चरे, सिद्ध नमी मद वारी जी ॥ छास्थ अवस्था रहे छे जिहां लगे, योगासन तप धारी जी ।।चो) मनापर्यव तव पामे, मनुज लोक विस्तारीजी॥ते प्रभुने प्रणमो भवि प्राणी, विजयक्ष्मी मुखकारी बी॥१॥इति ॥
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