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( १७५)
लुप्पल लंछन राजे, प्रभु सेव्यो भावठ भाजे ॥ १॥ धनुष पनर उंच शरीर, सोवन वान साहस धीर ॥ एक सहसश्युं लिये निरमाय, व्रत वरष सहस दश आय ॥२॥ समेत शिखर आरोही, पुहता शिवपुर निरमोही ॥ मुनि वीश सहस शुभ नाणी, प्रभुना उत्तम गुण खाणी ।। ३ ॥ वली साध्वीना परिवार, एकतालीश सहस उदार ॥ सुर भृकुटि देवी गंवारी, प्रभु शासन सांनिधकारी ॥४॥ तुज कीरति जगमां व्यापी, तप तपे प्रबल प्रतापी ॥ बुध श्रीनयविनय सुसीस, इम दियें नित नित आसीस ॥ ५ ॥
श्रीनेमिनाथ जिन स्तवन ।
(ढाल फागनी) समुद्र विजय शिवादेवी, नंदन नेमिकुमार ॥ शोरियपुर दश धनुपर्नु, लंछन शंख सफार । एक दिन रमतो आक्यिो , अतुलीबल अरिहंत ॥ जिहां हरी आयुधशाळा, पूरे शंख महंत ॥१॥ हरी भय भरि तिहां आवे,पेखे नेमि जिणंद।सरिखें सम बल परखें, तिहां जिते जिनचंद ॥ आज राज ए हरशे, करशे अपयश भूरि ।। हरी मन जाणी आणी, तब थइ गगने अडूरी ॥२॥ अणपरण्ये व्रत लेशे, देशे जग सुख एह॥हरी मत बीहे ईहे, प्रभुश्यं धर्मसनेह ॥ हरी सनकारी नारी, तब जन मजन जति ॥ मान्युं मान्यु परणवू, इम सवि नारी कहति ॥ ३॥ गुणमणि पेटी खेटी, उग्रसेन नृप पास। - १ मायारहित २ ज्ञानी. ३ श्राकृष्णने धारण करवानां शस्त्रोनी जगाए ४ न्हावा.
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