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( १७४)
श्रीमुनिसुव्रत जिन स्तवन । रसियानी ( अथवा ) प्रणमुं पास जिनेसर प्रेमथु, ए देशी ॥
पद्मादेवी नंदन गुणनिलो, राय सुमित्र कुल चंद, ॥ कृपा. निधि ।। नयरी राजगृही प्रभुजी अवतो, प्रणमें सुरनर द ।। कृपानिधि ॥ मुतिसुव्रत जिन भावे वंदियें ॥ १ ॥ 'कच्छप लंछन साहिब शामलो, वीश धनुष 'तनुमान ॥ कृ०॥ त्रीश सहस संवत्सर आउखु, बहु गुण रयण 'निधान ॥ कृ० मु० ॥२॥ एक सहसयुं प्रभुजी व्रत' अहि, समेतशिखर लहि' सिद्धि ॥ कृ०॥ सहस पंचास विराजे साहुगी, त्रीश सहस मुनि प्रसिद्धि ॥ कृ० मु० ॥३॥ नरद ता प्रभु शासन देवता, वरुण यक्ष करे सेव ।। कृपा जे प्रभु भगति राता तेहना, विधन हरे नितमेव ॥ कृ० मु० ॥४॥ भावठ भंजन जन मन रंजनो, मूरति मोहनगार ॥ कृ०॥ कत्रि जशविजय पथरे भवभवे, ए मुन एक आधार ॥ कृ० ॥ मु० ॥५॥
श्रीनमिनाथ जिन स्तवन । ( काज सिध्यां सकल हवे सार, (अथवा) प्रभुपासर्नु
मुखडु जोवा ए देशी ) मिथिलापुर विजय नरिंद, वप्रासुत नमि जिनचंद ॥ नी.
१ काचवा. २ प्रमाण. ३ वरष. ४ खजानो. ५ दिक्षा. ६ मोक्ष पाम्या ७ नीला कमळy.
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