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( १७३ ) गिरि सबल उछाह, सिद्विवधूनो करेरे विवाह ॥ सा० ॥ प्रभुना मुनि पंचास हजार, साठसहस साध्वी परिवारसा०॥३॥ यक्ष इंद्र प्रभु सेवाकार, धारिणी शासननी करे सार । सा० ॥ रवि उगे नासे जिम चोर, तिग प्रभुना ध्याने करम कठोर ॥ सा० ॥ ४ ॥ तुं सुरतरु चिंतामणिं सार, तुं प्रभु भगति मुगति दातार ॥ सा०॥ बुध जशविजय करें अरदास' दी, परमानंद विलास ॥ सा ॥५॥
श्रीमल्लिनाथ जिन स्तवन ।
(प्रथम गोवालातणे भवेजी, ए देशी) मिथिला नयरी अवतर्योजी, कुंभ नृपति कुलभाण ॥राणी प्रभावती उर धर्योजी, पचवीश धनुष प्रमाण ॥ भविक जन चंदो मल्लि जिणंद,जिम होयें परम आनंद भविक जन०॥शालंछन कलश विराजतोजी, नील वरण तनु कांति|संयम लीये शत त्रणश्युंजी भाजे भवनी भ्रांति भ० ० ॥२॥ वरष पंचावन सहसनुजी, पालीए पूरण आय ॥ समेतशिखर शिवपद लयुंजी, सुर किन्नर गुण गाय ॥ भ०व०॥ ३ ॥ सहस पंचावन साहुणीजी: मुनि चालीश हजार। वैरोटया सेवा करेजी, यक्ष कुबेर उदार ॥ भ० ० ॥४॥ मृरति मोहनवेलडीजी, मोहे जग जन जाण ॥ श्रीनयविजय सुशीशनेजी, दिये प्रभु कोडि कल्याण ॥ भ० वं० ॥५॥
१. अरज. २. कुळमां सूर्य सरखां. ३ उत्कष्ट.
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