SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७६) तव हरी 'जाचें माचे, माथे प्रेमविलास ॥ तूर दिवाजे गाजें, छाजे चामर कति ॥ हवे प्रभु आव्या परणवा, नवनवा उत्सव हंति ॥४॥ गोखे चढी मुख देखे, राजीमती भर प्रेम ॥ राग अमीरस वरचे, हरखे पेखी नेम ॥ मन जाणे ए टाणे, जो मुज परणे एह ॥ संभारे तो रंभा, सबल अचंभा तेह ॥ ५॥ पशुअ पुकार सुणी करी, इणि अवसरे जिनराय ॥ तस दुख टाली वाली, रथ व्रत लेवा जाय ॥ तब बाला दुख झाला, परवशि करेंरे विलाप ॥ कहिये जो हवे हुँ छंडी, तो देश्या व्रत आप ॥६॥ सहस पुरुषश्यं संयम, लिये शामल तनु कति ॥ ज्ञान लही व्रत आपे, राजीमती शुभ शंति ॥ वरष सहस आउखु, पाली गह गिरनार ॥ परण्या पूर्व महोत्सव, भव छांडी शिवनार ॥ ७॥ सहस अढार मुनीसर, प्रभुजीना गुणवंत ॥ चालीश सहस सुसाहुणी, पामी भवनो अंत ॥ त्रिभुवन अंबा अंबा, देवी सुर गोमेध ॥ प्रभु सेवामां निरता, करता पाप निषेध।।८॥ अमल कमल दल लोचन,शोचनरहित निरीह।। सिह मदन गज भेदवा, ए जिन अकल अबीह ॥ शंगारी गुणधारी, ब्रह्मचारी शिर लीह । कवि जशविजय निपुण, गुण गावे तुज निश दीह ॥९॥ १. भागे.२. तत्सर. ३. निर्मळ. ४. कमळनां पांदडा जेवां अणीयाळां नेत्रो. ५. कामदेवरुपी हाथीने मारवा सिंह जेवा छे. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy