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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७७ ) शी.. ॥ श्रीपार्श्वनाथ जिन स्तवन । नयरी वाराणसी अवतयों हो, अश्वसेन कुलचंद ॥ वामानंदन गुणनिलो हो, पासजी शिव तरु कंद ॥ परमेसर गुण नितु गाइये हो ॥१॥'फणिलंछन नव कर तनु जिनजी, सजल धनाधन वन ॥ संयम लियें शत तीनश्यु हो, सवि कहे ज्युं धन धन ॥५०॥२॥ वरष एक शत आउखु हो, सिद्धी समेत गिरीश ॥ सोल सहस मुनि प्रभुतणा हो, साहुणी सहस अडतीस ॥ १० ॥ ॥ ३ ।। धरणराज पद्मावती हो, प्रभु शासन रखवाल ॥ रोग शोग संकट टले हो, नाम जपत जपमाल ॥ ५० ॥४॥ पास आशपूरण अब मेरी, अरज एक अवधार ॥ श्रीनय विजय विबुध पय सेवक, जश कहे भवजल तार ॥ ५० ॥ ५ ॥ ॥ श्रीमहावीर जिन स्तवन ॥ तारहो तार प्रभु मुन सेवक भगी-ए देशी. आज जिनराज मुज काज सिध्यां सवे, तुं कृपाकुंभ जो मुज्झ तूठो ॥ कल्पतरु कामघट कामधेनु मिल्यो, अंगगे अमियरस मेह वूठो ॥ आ० ॥ १॥ वीर तुं कुंडपुर नयर भूषण हुओ, राय सिद्धार्थ त्रिशला तनुजो।। सिंह लंछ न कनक वर्ण कर सप्त धनु, तुज समो जगतमां को न दुजो ॥ आ० ॥२॥ सिंह परे एकलो धीर १ साप..२ हाथ. ३ पाणीथी भरेला वादळ सरखो नीलवर्ण. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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