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(१७८) संयम' ग्रहें, आयु बोहोत्तेर वरष पूर्ण पाली ॥ पुरी अपापायें निपाप शिववहू वों, तिहां थकी सर्व प्रगटी दीवाली ॥ आ० ॥ ॥ ३ ॥ सहस तुज चउद मुनिवर महा संयमी, साहुणी' सहस छत्रीश राजे ॥ यक्ष मातंग सिद्धायिका वर सुरी, सकल तुज वि. कनी भीति भाजे ॥ आ० ॥ ४ ॥ तुज वचन राग सुखसागरे जीलतो, पीलतो माह मिथ्यात्व वेली ॥ आवीओ भाविओ घरमपथ हुँ हवे, दीजियें परमपद होइ बेली ॥ आ० ॥५॥ सिंह निशि दोह जो हृदयगिरि मुज रमें, तुं सुगुणलीह अविचल निरीहो ॥ तो कुमतरंग मातंगना यूथथी, मुज नही कोइ लवलेश वीहो ॥ आ० ॥६॥ शरण तुज चरणमें चरणगुणनिधि ग्रह्या, भव तरण करण दम शरम राखो ॥ हाथ जोडी कहें जशविनय बुध इश्यु, देव निज भवनमां दास राखो ॥ आ० ॥ ७ ॥ Deauaaereanconeasamencoco ॥इति श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत चौद बोलनी चौविशी संपूर्णी॥
०BAGWANAPAARS.
॥जुदा जुदा कवीयोना रचेला छुटक स्तवनो॥
॥ श्रीऋषभजिन स्तवन ॥ ___ आज तो वधाइ राजा, नाभि के दरबाररे ॥ मरुदेवाए बेटो जायो, ऋषभ कुमार रै॥ आज० ॥ १॥ अयोध्यामां ओच्छव होवे, मुख बोले जयकार रै॥ घननन घननन घंटा वाजे,
.१ दीक्षा. २ मोक्ष. ३ साध्वीओ. ४ सुख समुद्रमा न्हातो.
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