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(६१) पंचाचार आराममा, पामु पंचम नाण ॥ पंच देह वर्जित थयो। पंच इस्वाक्षर मान ॥ ८ ॥ पंचम गति भरतार तार, पुरण परमानंद ॥ पंचमो तप आराधतां, श्री खिमाविजय जिनचंद ॥ ९॥ इति ॥
॥ ज्ञानपंचमीनू चैत्यवंदन ॥त्रीजें ॥ श्यामल वान सोहामणा, श्रीनेमि जिनेश्वर; समवसरण बेठा कहे, उपदेश सेाहंकर. ॥ १ ॥ पंचमो तप आराधता, लहे पंचम नाण; पांच वरस पंचमासनो, ए छे तप परिणाम. ॥ २ ॥ जिम वरदत्त गुणमंजरीए, आराध्यो तप एह; ज्ञानविमळ गुरु एम कहे। धन धन जगमा तेह. ॥ ३॥
॥ श्री अष्टमीनू चैत्यवंदन ॥ ॥ अष्टमी दिन धन जिनवरु ए, चंद्रप्रभु मनोहार || सेवा करता जेहनी, टाले भव दुःख द्वार ॥ १ ॥ भगवन् माखित जे वचन, धारे गुण भंडार ।। तेहिज अष्टमि तप भण्यु, आगम अर्थ उदार ॥ ॥२॥ ज्ञायक ज्ञेय स्वरुपयो ए, चरणधरे मुखकार ।। अष्टमि तप आराधवा, करे शुभ भाव विचार ॥ ३ ॥ अष्ट वरण अष्ट मासनी ए, तपविधि विधिमा सार || श्रावक तनमन वचनथी, पाले निरतिचार ॥ ४ ॥ पोसह पडिकमणुं करीए, पुजे जिन अंग अविकार || करुणा सागर गुण भर्या, मुनिजन वंदे विचार
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