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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६२ ) ५ ॥ आगम वयण सुणि करीए, पुछे प्रश्न विचार || गुरुगम हिने सह, समकित वड विस्तार || ६ || परम सरूप परमे सरुए, परमातम जगदिश || चंद्र प्रभु जिन अष्टमां, वंदो घरि सुजगीस || ७ || सारण वारण चोयणाए, प्रति चोयणनां जाण ॥ वख यात्र तेहने दिये, तो लहे सुख निरवाण ॥ ८ ॥ एहवी वाणी स्वमुखें, फरमावी जिनराज || भव्य जीव श्रवणे सुणी, धारो आम काज ॥ ९ ॥ मान क्रोध मद परिहरीए, धारो शुद्ध स्वभाव || आतम ज्ञान नये गृहि, आनंद घनरस पाव ।। १० ।। शांति • सुधारस गुणभर्याए, अनुभव भाव जिणंद || अचरण तेज अमृतसमो, रत्नमुनि गुणवृंद ॥ ११ ॥ उज्जल अष्टमिदिन भण्युए, समकीतीने सुखदाइ ॥ चंद्रमुनि गुण योग्यता, लहि आगम गुण छांहि ||१२|| ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ आठमनुं चैत्यवंदन. बीजुं ॥ चैत्र वदि आठम दिने, मरुदेवी जाये || आठ जाति दिग कुमरीये, आठ दिश गायेा ॥ १॥ आठ इंद्राणी नाथभुं, सुर संग इ आवे || सुरगिरि उपर सुरवरा, सर्वे मलि आवे ||२|| आठजाति कलशा भरी, चोसठ हजार || दोयसेने पचास मान, अभिषेक उदार || ३ || एक क्रोडने साठ लाख, उंचा तीस कोश | पहुल पणे अडचाल केाश, कलशा जल कोस ॥ ४ ॥ चार हृषभ · For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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