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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६०) ॥ पांचमनुं चैत्यवंदन ॥ पहेळु ॥ ॥ बारे पर्खदा आगळे, श्री नेमी जिनराय ॥ मधुरी ध्वनी दीये देशना, भवीजनने हित दाय ॥ १ ॥ पंचमी तप आराधीए, जेम लीजीए नाण ॥ कार्तिक शुदी पांचम ग्रही, हर्ष घरो मन भाण ॥ २ ॥ पांच वरस वळी उपरे, पांच मास लगी जाणी ।। अथवा यावत् जीव लगे, आराधेा गुण खाणी ॥ ३ ॥ वरदत्तने शुणमंजरी, पंचमी आराधी ॥ अंते आराधन करी, शिवपुरने साधी ॥ ४ एणीपरे जे आराधशे, पंचमी विधि संयुक्त ।। जिन उत्तम पद पद्मना, नमी थाये शिवभक्त ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥श्री पंचमीनु चैत्यवंदन ॥ बीजें ॥ ॥ युगला धर्म निवारीओ, आदिम अरिहंत ॥ शांतिकरं श्री शांतिनाथ जय करुणावंत ॥१॥ नेमिसर बावीसमां, बालथकी ब्रह्मचारी ॥ प्रगट प्रभावी पार्श्वनाथ, रत्नत्रय आधारी ॥ २ ॥ वर्तमान शासन धणीए, वर्द्धमान जगदीश ।। पांचे जिनवर प्रणमतो, जगमा वाधे जगीस ॥ ३ ॥ जन्म कल्याणक पंचरूप,सोहमपति आवे ॥ पंच वरण कलसे करी, सुरगिरि न्हवरावे ॥ ४ ॥ पंच शिष्य अंगुठडे, अमृत संचारे ॥ बालपणे जिनराज काज, इम भगति सुधारे ॥ ५॥ पंच धाय पालिजता. योवन वय पावें ॥ पंच विषे विष वेल त्रोडि, संजम मन भावे ॥ ६॥ छंडी पंच प्रमादने, पंच इंद्री बळ मोडी ॥ पंच महाव्रत आदरे, देइ धन कोही ॥७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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