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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५९ ) बंदु निशदीन प्रभात || ५ || महाविदेह विचरताए, बंदु सुरनर कोडी | पंडित धीरविमल तणो, नय वंदे कर जोडी ॥ ६ ॥ इति॥ || वीजनुं चैत्यवंदन ॥ श्रीजुं ॥ + ॥ चोविशमां जिनराजजी, चंपापुरी आवे; चौद सहस अॅण गारना; स्वामी तेह कहावे || १ || अढोकास उंचो सहि, समयसरणवीरचावे, त्रिभुवनपति गुरु तेहमां, उपदेश वरसावे. ||२| जितशत्रु राजा तिहां, प्रभुने वंदन आवे; तेपण समवसरण मांहो, बेसी हरषित थावे || ३ || भविक जीव तारण भणी, गौतम पूछे जिनने; बीज तिथि महिना कहो, संशय हरण प्रभु अमने ||४|| तव प्रभु परखदा आगळे, बीजनो महिमा भाखे; पंच कल्याणकजिनतणा. ते सहु संघनी साखे || ५ || बीजे अजित जनमोया, बीजे सुमति च्यवन; बीजे वासुपूज्यजी, लं केवळ नाण. ॥ ६ ॥ दशमा शीतळनाथजी, बीजे शिव पाम्या; सातमा चक्री अरजिन, जन्म्या गुणधाम. ॥ ७ ॥ ए पांचे जिन समरतांए, भवि पामे दोय धर्मः सर्वविरति ने देशविरति टाळे पातिक भर्म. ॥ ८ ॥ वीर कहे द्वितीया तिथि, ते कारण तमे पाळो चंद्रकेतु राजा परे, आतम अजवाळो || ९ || ते सांभळी बहु आदरे, प्राणी बीज तिथि सार; ते आराधतां केइना, थया आतम उद्धार ॥ १० ॥ चौविहार उपवास करी, बीज आराधो विवेक, नयसागर कहे वीरजिन, धो मुजने शिव एक. ॥। ११ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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