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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५८) ॥ बीजनुं चैत्यवंदन ॥ ।। बोज रीझ करी सिंचीए, प्रथम तिथिमां एह.॥ चंद्रका उदये वधे, तेम पुण्योदय रेह ॥१॥ अभिनंदन सुमति प्रभु, दशमा शितलनाथ ॥ वासुपूज्य अरनाथजी, मुगतिपुरीना नाथ ॥ २ ॥ इत्यादिक जिनवर तणा, जनम नाण निर्वाण ॥ बीन तणे दिन वंदा, पाभा कोड कल्याण ॥ ३ ॥ दुविह धर्मने सेवीए, निश्चय ने व्यवहार ॥ आगम नो आगम तणो, भावो तत्व विचार ॥ ४ ॥ बीजे ठाणे वर्णव्या, दोय दोय जे भेद ।।वीज तणे दिन मुनिवरा, ध्याता ध्यान दुभेद ॥ ५ ॥ अंग उपांगे वर्णव्या, जीव अजीक पुन्य पाप ॥ बंध मोक्ष दुग श्रेणीओ, भव्य अभव्यनी छाप ॥ ६॥ बहु श्रुत चरण कमळ नमी, संशय करीए दुर । गौतम प्रश्नोत्तर प.रे श्री शुभवीर हजुर ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ बोजर्नु चैत्यवंदन ॥ बीजं ॥ ॥ विष विजय विजयापुरी, सुदृढ नृप तात ॥ युगमंधर जिनवर नमुं. जस तारा मात ॥ १॥ पिया मंगळानो नाहलो, गज लंछन सोहे । सेोवन वन धनु पांच से, भविजन मन मोहे । २॥ लक्ष चोराशी पुरव→ ए, आयुमान लह्यो एह ।। सुद्धा संयम संग्रही, केवळ पाम्या जेह ॥ ३॥ त्रिगडे बेठा भविकने, आपे उपदेश ।। पातिहार्य आठे भला, अतिशय चोत्रीश ॥ ४ ॥ पांत्रिश वाणी गुण कहा, सेा काडी मुनी संघात ॥ दश लक्ष केवळ धर मुनि, For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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