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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७१ ) सेन नरनाहर्नु कुल अजुआलतोरे के कुल० ॥ अचिरानंदन वंदन, कीजे नेहश्युरै के कीजे०॥शांतिनाथ मुख पूनिम, शशिपरि उल्लश्युरे के ॥ श० ॥१॥ कंचन वरणी काया, माया परिहरेरे के ॥ माया० ॥ लाख वरपर्नु आउखं, 'मृग लंछन धरे के ।। मृग ॥ एक सद्यसश्युं व्रत ग्रहे, पालिक वन' दहेरे के ॥ पा० ॥ समेत शिखर शुभ ध्यान थी,शिवपदवी लहेरे के । शिव०॥२॥ चालीश धनु तनु राजें, भाजे भय घणारे के भा०॥ बासठ सहस मुनीसर, विलसें प्रभुतणारे के ॥ वि० ॥ एकसठ सहस छसें वली, अधिकी साहु. णीरे के ॥ अ० ॥ प्रभु परिवारनी संख्या, ए साची मुणीर के ॥ ए०॥३॥ गरुड यक्ष निरवाणी, प्रभु सेवा करेरे के ॥ १०॥ ते जन बहु सुख पावशे, जे प्रभु चित्त धरैरे के ॥ जे० ॥ मद झरता गाजे, तस धरि आंगणेरे के ॥ त०॥ तस जगहिमकर' सम, जश कवियण भगेरै के ॥ ज० ॥ ४ ॥ देव गुणाकर चाकर, हुँ छु ता. हरोरे के पहु०॥ नेह नजर भरि मुजरो,मानो माहरोरे के मा०॥ तिहुअण भासन शासन, चित्त करुणा करोरै के ॥ चि० ॥ कवि जशविजय पयंपे, मुज भव दुख हरोरे के मु० ॥५॥ श्रीकुंथुनाथ जिन स्तवन । (ढाल मरकल डानी) गजपुर नयरी सोहियेंजी साहिब गुणनिलो ॥ श्रीकुंथुनाथ १. हरिण, २. चंद्रमां. ३. कहे, For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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