SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७९) । बीजो थोष जोडो॥ । व्याशीलाख पुरव घरवासे, वसीया परिकर युक्ता जी ॥ जनम थको पण देवतरु फल. क्षोरोदधि जल भोक्ता जी ॥ मई सुअ ओहि नाणे संयुत्त, नयण वयण कज चंदा जी ।। चार सहसशुं दीक्षा शिक्षा, स्वामी ऋषभ जिणंदा जी ।। ॥ मनपर्यव तव नाण उपन्यु, संयत लिंग सहावा जो ।। अढिय द्वोपमा सन्नी पंचेंद्रिय, जाणे मनोगत भावा जी ॥ द्रव्य अनंता सूक्ष्म तीर्छा, अढारशे खित्त ठाया जी ॥ पलिये असंखम भाग त्रिकालिक, द्रव्य असंख्य परजाया जी ॥ २॥ ऋपभ जिणेसर केवल पामी, रयण सिंहासण ठाया जी ॥ अनभिलप्प अभिलप्प अनंता, भाग अनंत उच्चराया जी ॥ तास अनंतमे भागे धारी, भाग अनंते सूत्र जी ॥ गणधर रचियां आगम पुजी, करीये जनम पवित्र जी ॥ ३ ॥ गोमुख जक्ष चकेसरी देवी, समकित शुद्ध सोहावे जी ॥ आदि देवनी सेव करती, शासन शोम चढावेजो ॥ श्रद्धा संयुत जे व्रतधारी, विधन सास निवारे जी॥ श्री शुभ वीरविजय प्रभु भगते, समरे नित्य सवारे जी ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ श्री अजितनाथजीनी स्तुति ॥ . विश्वनायक कायक, जित, विजयानंद ॥ पयजुग निव मणमे, देव अने देविंद ।। भाव बहिरी गहिरी संव, मन घरीये भमंद॥ श्री सूरत सहिरे, वेदो अनित निणद ॥ १॥ आठ मावी For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy