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(८०) हारज, अतिशय वलि चौतीस ॥ दिल रंजण देसन, तेहना गुण तीश ॥ अगणित रिद्ध धाग. आचारीमा ईस ॥ एह गुणना धारक, वांदु जिन चोवीश ।। २ ।। शुद्ध अरथ अनोपम, जिन भाषित सिद्धांत ।। स्याद्वाद नगदिक, हेतु युक्त नवि भ्रांत ।। पाप करदम पाणी, सदगतिनी सहिनाणी ॥ मुणिये नित भविका, आगम केरी वाणी ॥ ३॥ सासणनी साची, देवी सानिध्य कारी। दु:ख कष्ट निवारण, सेवीजे सुखकारी ॥ साचे मन समरे, ते सुख लाभ अपारी ॥ जिनलाभ पयंपे, होज्यो जय जयका. री॥ ४ ॥ इति ॥
॥ श्री शीतलनाथ जिन स्तुति ॥ ॥ मुख समकित दायक, कामित सूरतरु कंद ॥ दृहरय नृप राणी, नंदा केरो नंद ॥ भद्दलपुर स्वामी, फेडे भवना फंद ॥ चित चोखे नमिये, श्री शीतल निनचंद ॥ १ ॥ अतित अनागत, हुआ होस्ये अनंत ॥ संपति काले जे, क्षेत्रविदेहे विचरंत ॥ त्रिहुं भवने ठयणा, सायस असासय संत ॥ ते सघला त्रिकरण, प्रणमुं श्री अरिहंत ॥ २ ॥ कालिक उत्कालिक, अंग अनंग पविठ॥ नय भंग निक्षेपा, स्यादवाद मित सिठ ॥ भविजन उपगारी, भारी जिन उपदेश ॥ श्रुत श्रवणे मुणता, नासे कोडि कलेश ॥ 3 ॥ ब्रह्म नक्ष अशोका, शासन सुरि सुविचार ॥ संघ सानिध कारी, निरमल समकित धार ॥ चिंता दुख चूरे, पुरे मनह जंगीस ॥ ध्यान तेहनों धरीये, कहे जिन छाभ सूरीस ।। ४ ॥ इति ॥
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