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(७८) थली, सितेर नव पणविस ॥ बार अडवीस लोगसतो, काउसग्ग धरो गुणीस ॥ २ ॥ वीस सतर इगवन्न, द्वादशन पंच ॥ इणीपरे काउसग्ग जो करे, तो जाए भव संच ॥ ३ ॥ अनुक्रमे काउसम्ग मने धरो, गुणो लेज्यो वीस ॥ वीस थानक इम जाणीए, संक्षेपथी लेश ॥ ४॥ भाव धरी मनमा घणाए, जो एक पद आराधे।। जिन उत्तम पद पद्मने । नमी नीज कारज साधे ॥ ५॥ इति संपूर्णम् ।।
थोयानो संग्रह. ॥ श्री ऋषनदेवजीनी स्तुति ॥ ॥ मह उठी वंदूं, ऋषभदेव गुणवंत ॥ प्रभु बेठा सोहीये, समवसरण भगवंत ॥ त्रण छत्र विराजे, चामर ढाले इंद्र ॥ जिनना गण गावे, सुरनर नारीना वृंद ॥१॥ बार परवदा बेसे, इंद्र इंद्राणी राय । नव कमळ रचे मुर, जिहां ठविया प्रभु पाय ॥ देव दुदभी वाजे, कुसुम दृष्टि बहु हुंत ॥ एवा जिन चोवीसे, पूजो भवि एक चित्त ॥ २॥ जिनजोजन भूमी, वाणीने विस्तार ॥ प्रभु अरय प्रकाशे, रचना गणधर मार ॥ सो आगम सुणतां, दीजे गती चार ॥ जिन वचन घखाणी, लहीये भवनो पार ।। ३॥ जक्ष गोमुख गीरवो, जिननी भगती करेव ॥ तिहां देवो चकेसरी, विधन कोड हरेक ॥ श्री तपगच्छ नापक, विजयसेन मुरि। जय ।। सकेरो श्रावक, ऋषभदास गुण गायः।। ४ ॥ईमि ॥
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