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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ७७) ॥ श्री बांबिल वर्धमान तपर्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ वर्द्धमान जिनपति नमी, वर्द्धमान तप नाम ॥ ओली आं. बिकनी करूं, वर्तमान परिणाम ॥ १॥ एक एक दिन यावत् शत, ओली संख्या थाय ॥ कर्म निकाचित तोडवा, बज्र समान गणा. य॥ २ ॥ चोद वर्ष त्रण मासनी, ए संख्या दिननी वोस । यथा विधि आराधतां, धर्मरत्न पद इश: ३ ।। ॥ वोस स्थानक नाम चैत्यवंदन लिख्यते ॥ ॥ पहिले पद अरिहंत नमुं॥ विजे सरव सिद्ध ॥ 'पीजे प्रव. चन मन धरो ॥ आचारज सिद्ध ॥१॥ नमोथेराणं पांचमे ।। पाठक गुण छठे ॥ नमोटोए सनसाहूणं, जे छे गुण गरीठे ॥२॥ नमो नाणस्स पाठमे ॥ दरसण मन भावो ॥ विनय करो गुणवंतनो॥ चारित्र पद ध्यागे ॥ ३ ॥ नमो बंभवप धारिणं ॥ तेरमें कीरीयाणं ॥ नमो तवस्स चौदमे ॥ गोयम नमोजिमाण ॥४॥ चारित्र ज्ञान सुअस्सनें ए, नमो तीथ्यस्त जाणो ।। जिन उत्तम पद पाने, नमतां होय सुख खाणो ॥ ५॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ वीसस्थानक तपना काउसगर्नु । चोवीस पर पीस्ताले सनो, छत्रीशनो करीए ॥ दस परबीस सत्तावीसनो, काउसग्ग मन घरीए ॥ १॥ पंच सहसठि दस For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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