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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७६) अढार दोष वर्जित जिन चैत्यवंदन. (२ जु). क्रोध मान मद लोभ माय, अज्ञान अरति रति; हिंसादिक निद्रा अने, मत्सर ने अमोति. ॥ १ ॥ शोक, भय, अने भीति, रतिक्रीडाप्रसंग; दोष अढार प्रगेट निकट, नहीं जेने अंग. ॥२॥ देव सर्वे शिर सेहरो ए, ते कहोए निरधार; ज्ञान विमळ प्रभु भुवननो, पुण्यवणो भंडार. ॥ ३ ॥ ॥ रोहिणी तप चैत्यवंदन ॥ वासवपूजित वासुपूज्य, वर अतिशय धारी; केवळकमला नाथ साथ, अविरति जेणे वारो. ॥१॥ परमातम परमेसरु ए, भविजन नयनानंद शांत दांत उत्तम गुणो, वर ज्ञान दिणंद. ॥२॥ बेठी बारे पर्षदा, निमुणे जिन गिर्वाण; एक चित्त लय लाइए, देइ निज कान. ॥ ३ ॥ तव जगपति तिहां उपदिशे, रोहिणी तप मुविचार; आराधो भवि भावशुं, आतपने सुखकार. ॥ ४ ॥ सात वर्ष सात मासनी, अवधि कही सुप्रमाण; आराधे सुख संपदा, पापे पद निर्वाण. ॥ ५॥ वाचक शुभ नय शिष्यनो ए, भक्तिविजय गुण गाय; वासुपूज्य जिन ध्यानयो अभुभव मुख थाय ॥६॥ १ पांच. २ छ. ३ हिंसा-असत्य ने अदत्त. ४ आने बदले मागधी गाथाओमां हास्य कहेल छे. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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