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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०६ ) श्री अजितनाथनुं स्तवन. 0 ॥ प्यारी ते पियुजीने विनवे हो राज || ए देशी || अजीत जीनेसर वालहा हो राज, आतमनो आधार ॥ वारी मोरा साहीबा, शांती सुधारस देशना हो राज || गाजे जेम जलधार, बारी मोरा साहीबा || अजीत || १ || भविजन शंसय भांजवा हो राज, वास अभिप्रायनो जाण ॥ वारी मोरा साहिबा, मिथ्या तिमिर उच्छेदवा हो राज || उभ्यो अभिनव भाण, बारी मोरा साहीबा ॥ अजीत ॥ २ ॥ सारथवाह शीव पंथनो हो राज, भवोदधि तारहार || बारी० ॥ केवलज्ञान दिवाकरु होराज ॥ भाव घरम दातार || वारी० ॥ अजीत || ३ || क्षायक भावे भोगवे हो राज, अनंत चतुष्टय सार || बारी० || ध्येय्पणे हवे ध्यावतां हो राज, ध्यायक थाए निस्तार || बारी० || अजीत || ४ || वस्तु स्व मावने जाणवे हो राज, आतम संपदा इश ॥ वारी० ॥ अष्ट कर मना नाशथी हो राज, प्रगटे गुण एकत्रीश || वारी० ॥ अजीत० ॥ ५ ॥ विजयानंदन एम थुणे हो राज, जीम शत्रु कुछ दीनकार || बारी० || कांचन कांति सुंदरुं हो राज, गज लंछन सुखकार ॥ बारी० ॥ अजीत || ६ || समेत शिखर सिद्धि वर्या हो राज.. सहस पुरुपने साथ || वारी० || उत्तम गुरु कृपा ल्हेरथी हो राज, रतन थाशे सनाय || वारी० ॥ अजीत० ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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