SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७) ॥ श्री संभवनाथनुं स्तवन ॥ ॥ अष्टापद गिरिजात्रा करणकू रावण प्रतिहरी आया (अथवा) आघा आम पधारो पुज्य अमघर वहोरण वेला ॥ ए देशी॥ संभव जीनवर साहेब साचा, जे छे परम दयाल । करुणानिकि जगमाही मोटो, मोहन गुण मणीमाल ॥१॥ भवियां भाव धरीने लाल, श्रीजीन सेवा कीजे ॥ दुरमति दुर करीने लाल, नरभक सफलो कीजे ॥ ए आंकणी ॥ एह जगत गुरु जुगते सेवो, खटकाय प्रतिपाल ॥ द्रव्य भाव परिणति करो निरमल, पुजो थई उजमाल ॥ भवि० ॥२॥ केसर चंदन मृगमद भेळी, अरचे जीनवर अंग ॥ द्रव्य पूजा ते भावनुं कारण,कीजे अनुभव रंग ॥मविक ॥ ३ ॥ नाटक करतां रावण पाम्यो, तीर्थकर पद सार । देवपाल प्रमुख जीनपद ध्याता, प्रभु पद लयुं श्रीकार ॥ भवि० ॥४॥ वितराग पुजाथी आतम, परमातम पद पावे ॥ अब अक्षय मुख जीहां शाश्वतां, रुपातित स्वभावे ॥ भवि० ॥ ५॥ अजर अमर अविनाशी कहीये, पुरणानंद जे पाम्या ॥ लोका कोक स्वभाव विभासक, चउगतिना दुःख वाम्यां ॥ भवि०॥६॥ एवा जीनन यान करता, लहीए मुख निरवाण ॥ जीन उत्तम पदने अवलंबी, रतन लहे गुण खाण ॥ भवि० ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy