________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( १८७ ) ॥ श्री विमलनाथ जिन स्तवन ।
॥ अबधु एसो ज्ञान विचारी-ए देशी ॥ ॥ प्रभुनी मुज अवगुण मत देखो ॥ ए आंकणी ॥ राग दि. शाथी तुं रहि न्यारो, हुं मन रागे घालूं ॥ द्वेष रहित तुं समता भीनो, द्वेष मारग हुं चालू ॥ प्रभुजी० ॥१॥ मोह लेश फरश्यो नही तुहि, मोह लगन मुज प्यारी ॥ तुं अकलंकी कलंकित हुं तो, ए पण रहिणी न्यारी ॥ प्रभु० ॥२॥ तुहि निराश भाव पद साधे, हुं आशा संग विलुद्धो ।। तुं निश्चल हुं चल तुं मुधो, हुं आचरणे उधो ॥ प्रभुः ॥ ३॥ तुज स्वभावथी अवळा माहरा, चरित्र सकळ जर्गे जाण्या।। भारेखमा प्रभुने ते कहेतां, न घटे मुहढे आज्या ॥ प्रभु० ॥ ४ ॥ प्रेम नवल जो होय सवाइ, विमलनाथ मुख आगे ॥ कांति कहे भव वन उतरतां, तो वेळा नवि लागे ॥प्रभु० ॥५॥ इति ॥
॥ श्री अनंतजिन स्तवन ॥ मूरतिहो प्रभु मूरति अनंतजिणंद, ताहरीहो प्रभु ताहरी मुज नयणे वसीजी; समताहो प्रभु समतारसनो कंद, सहजेहो प्रभु सहजे अनुभव रसलसीजी ॥ १ ॥ भवदवहो प्रभु भवदवतापित जीव, तेहनेहो प्रभु तेहने अमृतधन समीजी: मिथ्याविषहो प्रभु मिथ्या विषनी खीव, हरवाहो प्रभु हरवा जांगुलमणी रमीजी ॥ २ ॥ भा
For Private And Personal Use Only