SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८८) वहो प्रभु भावचिंतामणी एह, आतमहो प्रभु आतमसंपती आपवाजी; एहिजहो प्रभु एहिज शीवसुखगेह, तखीहो प्रभु तत्वालंबन थापवाजी ॥ ३ ॥ जायेहो प्रभु जाये आश्रव चालि; दीठेहो प्रभु दीठे संवर वधेजी: रतनहो प्रभु रतन त्रयी गुणमाळ, अध्यातमहो मभु अध्यातम साधन सधेनी ॥ ४॥ मीठीहो प्रभु मीठी मुरति तुज, दीठी हो प्रभु दीठी रुचि बहु मानथीजी: तुज गुणहो प्रभु तुज गुण भासन युक्त, सेवेहो प्रभु सेवे तमु भय भय नथीजी ॥५ ॥ नाभेहो प्रभु नामे अद्भुत रंग, ठवणाहो प्रभु ठवण दीठां उल्लसेजी; गुणआस्वादहो प्रभु गुणआस्वाद अभंग, तन्मयहो प्रभु तन्मयताए जे घसेजी ॥ ६ ॥ गुणअनंतहो प्रभु गुणअनंतनो ईद, नाथहो प्रभु नाथ अनंतने आदरेजी; देवचंद्र हो प्रभु देवचंद्रने आणद, परमहो प्रभु परम महोदय ते वरेजी ॥७॥ ॥श्री धर्मनाथ जिन स्तवन ।। ॥मोतीडानी-देशी ॥ ॥ धरम जिणंद तुमे लायक स्वामी, मुज सेवकमां पण नहि खामी ॥ साहिबा रंगीला हमारा, मोहना रंगीला ॥'जुगति जोडि मळी छे सारी, जोज्यो हियडे आप विचारी ॥ साहिबा० ॥१॥ भगतवत्सळ ए बिरुद तुमारो, भगति तणो गुण अचळ अमारो ॥ सा० ॥ तेहमां को विवरो' करि कळशे, तो मुज गुण अवरयमां भळशे ॥ सा० ॥२॥ मूळ गुण तुं निराग कहावे, ते किम राग १ जोइए तेवी, २ फोड. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy