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( १८८) वहो प्रभु भावचिंतामणी एह, आतमहो प्रभु आतमसंपती आपवाजी; एहिजहो प्रभु एहिज शीवसुखगेह, तखीहो प्रभु तत्वालंबन थापवाजी ॥ ३ ॥ जायेहो प्रभु जाये आश्रव चालि; दीठेहो प्रभु दीठे संवर वधेजी: रतनहो प्रभु रतन त्रयी गुणमाळ, अध्यातमहो मभु अध्यातम साधन सधेनी ॥ ४॥ मीठीहो प्रभु मीठी मुरति तुज, दीठी हो प्रभु दीठी रुचि बहु मानथीजी: तुज गुणहो प्रभु तुज गुण भासन युक्त, सेवेहो प्रभु सेवे तमु भय भय नथीजी ॥५ ॥ नाभेहो प्रभु नामे अद्भुत रंग, ठवणाहो प्रभु ठवण दीठां उल्लसेजी; गुणआस्वादहो प्रभु गुणआस्वाद अभंग, तन्मयहो प्रभु तन्मयताए जे घसेजी ॥ ६ ॥ गुणअनंतहो प्रभु गुणअनंतनो ईद, नाथहो प्रभु नाथ अनंतने आदरेजी; देवचंद्र हो प्रभु देवचंद्रने आणद, परमहो प्रभु परम महोदय ते वरेजी ॥७॥
॥श्री धर्मनाथ जिन स्तवन ।।
॥मोतीडानी-देशी ॥ ॥ धरम जिणंद तुमे लायक स्वामी, मुज सेवकमां पण नहि खामी ॥ साहिबा रंगीला हमारा, मोहना रंगीला ॥'जुगति जोडि मळी छे सारी, जोज्यो हियडे आप विचारी ॥ साहिबा० ॥१॥ भगतवत्सळ ए बिरुद तुमारो, भगति तणो गुण अचळ अमारो ॥ सा० ॥ तेहमां को विवरो' करि कळशे, तो मुज गुण अवरयमां भळशे ॥ सा० ॥२॥ मूळ गुण तुं निराग कहावे, ते किम राग
१ जोइए तेवी, २ फोड.
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